शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

संकट में लाडली



कैसे बनेगी लाडली लक्ष्मी
एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार बेटियों को बचाने और लाडलियों को लक्ष्मी बनाने पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं। बेटियों की शादी के लिए मुख्यमंत्री कन्यादान योजना लागू है। लेकिन अब यही लाडलियां संकट में आ गई हैं। हालात ये हैं कि गांव हो या कस्बा, शहर बड़ा हो या छोटा, इलाका आबाद हो या सुनसान... लाडलियां हर जगह बदमाशों के निशानों पर हैं। जी हां ये हकीकत केवल हमारी जुबानी नहीं, बल्कि हैवानियत की उन तमाम कहानियों से भी बयां होती हैं, जिन्होंने हर खास और आम को झकझोर कर रख दिया है। हालात ये हैं कि अब तो प्रदेश की राजधानी में भी लाड़लियां महफूज नहीं रह गईं हैं। भोपाल के अरेरा कॉलोनी में भी परिचित बनकर दगा देने वाले मुस्तफा ने भी कुछ ऐसा ही किया। मुस्तफा ने अपने साथी के साथ मिलकर 10 वीं की छात्रा का पहले तो अपरहण किया, फिर उसे दरिंदगी का शिकार बनाया और फिर हत्या तक कर डाली। इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसने लाड़लियों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं।

28 सितंबर 2012, इंदौर में 6 साल की मासूम की दर्दनाक मौत, सौतेले मां-बाप ने दीवार पर फेंककर की हत्या। 

21 सितंबर 2012, जबलपुर में छात्रा का MMS, अश्लील सीडी बनाकर ब्लैकमेल करने का मामला। 

18 फरवरी 2012, इंदौर में दो युवतियों से गैंगरेप, अश्लील MMS बनाकर किया सार्वजनिक।
कितनी महफूज हैं लाडलियां
ये तो महज वो मामले हैं जो ताजा है और लोगों के जेहन में जिंदा भी है। अगर आंकड़ों की बात करें तो मध्य प्रदेश में एक जनवरी 2012 से 20 जून 2012 तक यानी 170 दिनों में कुल 1,687 महिलाओं की आबरू तार-तार हुई। जिनमें 858 नाबालिग हैं, यानी हर दिन 5 लाडलियों को प्रदेश में कहीं-न-कहीं ज्यादती का शिकार होना पड़ रहा है। प्रदेश के गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने विधानसभा में एक प्रश्न के जवाब में जो जानकारी दी, ये आंकडे उन्हीं की बानगी है। इतना ही नहीं NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, देश में साल 2011 में बलात्कार के कुल 24,206 मामले सामने आए। और यहां भी बलात्कार के मामलों में मध्य प्रदेश सबसे आगे रहा। जहां 1,262 मामले दर्ज हुए। बहरहाल इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में लाड़लियां कितनी सुरक्षित हैं। ये आंकड़े किसी भी सभ्य समाज के लिए चिंता की बात भी हैं और गुस्से की वजह भी। 


महेश मेवाड़ा
पत्रकार

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

पाकिस्तान में मुगल-ए-आजम!


कहते हैं इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपता... पाकिस्तान की सियासत में भी इन दिनों मोहब्बत को लेकर कुछ ऐसे ही हालात बने हुए हैं... मानो इश्क को लेकर शहजादे सलीम ने अपने पिता अकबर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया हो... हम बात कर रहे हैं पाक राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के 24 साल के बेटे बिलावल भुट्टो की... जो अपने देश की युवा विदेशमंत्री हिना रब्बानी खार के कथित प्यार में पागल हैं... चर्चा तो ये भी है कि हिना कथित प्रेम संबंधों को लेकर अपने पद से इस्तीफा भी दे सकती हैं... सोशल नेटवर्किंग मीडिया और कुछ वेबसाइटों के मुताबिक, हिना के इश्क में बिलावल के इस तरह दीवाना होने से जरदारी काफी खफा हैं... और वो हिना को बुलाकर अपने बेटे के साथ कथित प्यार की पींगे बढ़ाने को लेकर नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं... सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राष्ट्रपति के सामने इन रिश्तों का खुलासा उस वक्त हुआ था... जब हिना ने बिलावल को ईद-उल-फितर के मौके पर गुलदस्ते के साथ एक खत भेजा... जिसमें लिखा था, "कोई शक नहीं कि हमने काफी इंतज़ार कर लिया है, और क्या यह समय इंतज़ार को खत्म करने का नहीं है... ईद मुबारक" बताया जाता है कि इसके बाद ही जरदारी ने हिना को तलब किया... लेकिन हिना ने बेहद सख्ती से जरदारी की आलोचना करते हुए उन्हें उनकी जाती जिंदगी में दखलअंदाजी न करने की हिदायत दे दी... इतना ही नहीं हिना ने जब इस मामले में बिलावल से बात की... तो बिलावल ने भी पीपीपी के चेयरमैन पद से इस्तीफा देने और साल के आखिर तक देश छोड देने की धमकी दे डाली... अब इसे पाकिस्तान में 'मुगल-ए-आजम'! ही कहेंगे कि मोहब्बत की खातिर बिलावल और उनके पिता जरदारी के बीच तनाव पैदा हो गया है...
बहरहाल जिस पाकिस्तान में औरतों की तरक्की को लेकर घमासान मचा रहता है... वहां सबसे कम उम्र की विदेश मंत्री बनकर हिना खार रब्बानी सुर्खियों में आई... और उन्होंने अपने बेपनाह हुस्न से पूरी दुनिया को अपना दिवाना बना दिया... भारत दौरे के दौरान भी हिना ने खूब सुर्खियां बटोरी... कभी उनका पहनावा चर्चा में रहा... तो कभी उनकी मोतियों की माला... इतना ही नहीं हिना जो भी पहनती हैं... हर किसी की निगाहें उनपर आ टिकती... लेकिन इस बार वो सुर्खियों में अपनी मोहब्बत को लेकर... पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक 19 नवंबर 1977 को इस हुस्न की मलिका का जन्म एक रसूखदार परिवार में हुआ... साल 1999 में उन्होंने लाहौर यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट साइंस में बीएससी ऑनर्स किया... इसके बाद अमेरिका की मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी से होटल मैनेजमेंट की डिग्री ली... इसी दौरान हिना ने पाकिस्तान के अरबपति कारोबारी फिरोज गुलजार से निकाह किया... और उनकी दो बेटियां भी हैं... जिनका नाम है अनन्या और दीना... लेकिन खबर की माने तो 35 साल कि हिना अपने से 11 साल छोटे पाकिस्तान के युवराज बिलावल के प्यार में इस कदर फना हैं... कि वो अपनी शादीशुदा जिंदगी को भी खत्म करने को तैयार हैं...
सियासत की इस हाईप्रोफाइल मोहब्बत को लेकर इंटरनेट पर भी धमाका मचा है... हिना और बिलावल के कथित प्यार को लेकर पूरी दुनिया के लोगों ने कई तरह के ट्विट किए हैं... कोई इस मोहब्बत को सच मान रहा है... तो कुछ इसे महज अफवाह करार दे रहे हैं... ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है... जो मान रहे हैं कि ये केवल पब्लिसिटी स्टंट है... लेकिन फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं... जो पाकिस्तान की सियासत के इन दो खूबसूरत चेहरों की मोहब्बत को पाक मान रहे हैं... पाकिस्तान में ये लव स्टोरी अब मुगले-आजम बन चुकी है... रील लाइफ में सलीम, शहंशाह अकबर के शहजादे थे... बिलावल और जरदारी का रिश्ता भी बाप-बेटे का ही है... बस ट्विस्ट है तो अनारकली को लेकर... पाकिस्तान की इस मुगले-आजम में अनारकली कोई आम नाचने वाली नहीं जिसे शहंशाह दीवार में चुनवा दें... वो पाकिस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में जानी-पहचाने जाने वाली शख्सियत है... ऐसे में जरदारी अपनी मर्जी से इस लव-स्टोरी का मुकद्दर तय कर पाएंगे... ये मुमकिन नहीं दिख रहा... वैसे भी ये कहानी जिस तरह क्लाइमेक्स की ओर बढ़ रही है... आसार इसी बात के ज्यादा दिख रहे हैं कि इस कहानी का दि एंड सलीम और अनारकली खुद अपने हाथों से लिखें... महेश मेवाड़ा पत्रकार

मंगलवार, 13 मार्च 2012

'शिव' का सफर

वो लड़ता था हक की लड़ाई... धार्मिक कार्यों से था जुड़ाव... कुछ कर गुजरने का था जुनून... वो है प्रदेश की राजनीति का महारथी... ये उस पांव-पांव वाले भैया की हकीकत है...जिसे लोग सीना चोड़ा करके सुनाते हैं... सीहोर जिले की बुधनी तहसील के छोटे से गांव जैत में 5 मार्च 1959 को जन्में शिवराज सिंह चौहान की कुछ कर जुगरने की चाहत घर से ही शुरू हो गई थी...उन्होंने छोटी उम्र में ही ऐसे फैसले लेने शुरू कर दिए थे...जो उनके घरवालों को भी परेशानी में डाल देते थे...उनके चाचा की मानें तो सबसे पहले उन्होंने गरीब मजदूरों के हक की आवाज बुलंद कर उनका बाजिव हक दिलाया... मुख्यमंत्री बचपन से गांव के मंदिर में भजन-कीर्तन और रामायण का पाठ किया करते थे...साथ ही चौपाल लगाकर लोगों की समस्या सुनने में उन्हें बेहद खुशी मिलती थी... छोटे से गांव से प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने तक के सफर में शिवराज सिंह चौहान ने अपने जीवन और राजनीति में कई उतार-चढ़ाव देखे...घर वालों के दबाव के बाद भी साल 1972 से ही वो संघ से जुड़ गए... और छात्र नेता से लेकर आपात काल के दौरान भूमिगत रहकर भी उन्होंने संघ के लिए काम किया... जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा... इसी उठापटक के बीच घरवालों की मर्जी के चलते वो साधना सिंह के साथ शादी के बंधन में बंध गए... शिवराज सिंह चौहान ने भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष का भी जिम्मा बसूबी निभाया... और 29 नवंबर 2005 को प्रदेश के 17 वें मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की बागडोर संभाली...इस दौरान उनके कई अनूठे रंग भी देखने को मिले...कभी वो तैरते नजर आए... तो कभी किसान बनकर खेती का जायजा लिया... इतना ही नहीं वो दो-दो चश्मा लगाते हुए भी दिखे... तो कभी मग्न होकर आरती गाते नजर आए... बहरहाल मध्यप्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकार के पांच साल पूरे करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शुरु से ही देशसेवा करना चाहते थे...छोटे से गांव में जन्में शिवराज ने गरीब-मजदूरों के हक की लड़ाई छोटी उम्र में ही शुरू कर दी थी...एमए फिलॉस्पी से गोल्ड मेडलिस्ट शिवराज ने कार्यकर्ता से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक का सफर लोगों की सेवा करते ही तय किया...बहरहाल प्रदेश के मुखिया को उनके 53 वें जन्मदिन पर करोड़ों लोग ढेर सारी शुभकामनाएं दे रहे हैं...

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

फनकार की आपबीती


इंसान के अंदर छिपी प्रतिभा आखिर क्यों दब जाती है। और क्यों ये मतलब परस्त दुनिया एक काबिल इंसान को निराशा के गहरे समंदर में डुबोकर मार देती है। एक फनकार की कहानी सुनकर कुछ ऐसा ही लगा कि मानो जैसे उसने इस मतलबी दुनिया को समझने में भूल की। "मिट नहीं सकता कभी लिखा हुआ तकदीर का"...... संसार फिल्म के इस गीत को वृद्धाश्रम में गुमनामी की जिंदगी बसर कर रहे दिवाकर जोशी ने जब लिखा होगा। तब सोचा भी नहीं होगा कि उनको ऐसे हालातों से गुजरना पड़ेगा। दिवाकर का अतीत जानकर कोई भी हैरत में पड़ जाए कि क्या वाकई किस्मत इतनी करवट बदलती है। उदार प्रवृत्ति के जोशी ने विनोवा भावे की अपील पर बचपन में ही अपने हिस्से की जमीन देश को समर्पित कर दी। और निकल पड़े दुनिया की खाक छानने। बचपन से ही दिवाकर जोशी को गीत-कहानी लिखने का बड़ा शौक था। और यही रूची उन्हें खींचकर मुंबई की गलियों में ले गई। जहां इस फनकार ने राजकपूर की फिल्म आग समेत कई मशहूर गीत और कहानियां लिखी। जिन्हें मोहम्मद रफी और मुकेश जैसे गायकों ने अपनी आवाज से तराशा। राजकपूर की फिल्म आग का गीत "जिंदा हुं इस तरह कि गमे जिंदगी नहीं".... गीत को भी इसी फनकार ने लिखा था। लेकिन इस फनकार की लेखनी के सहारे बुलंदियां हासिल करने वाले फिल्मकारों और मतलब परस्तों ने ही उन्हें बेसहारा छोड़ दिया। अपने साथ हुए इस धोखे से आहत जोशी मुंबई को अलविदा कहकर घर लौट आए। इसके बाद उन्होंने राजनीति का भी रुख किया। और वहां भी उन्होंने अपना लोहा मनवाया। लेकिन यहां भी उन्हें धोखे के सिवा कुछ नहीं मिला। धोखे और अपनों की बेवफाई के बाद जोशी को दर-दर की ठोकरें भी खानी पड़ी। कई दिनों तक उन्हें भूखा रहना पड़ा। और वे बेसहारा यहां-वहां भटकते रहे। आखिर में वे पहुंचे भोपाल के एक वृद्धाश्रम में जहां गैरों से मिला अपनापन और वे वहीं के होकर रह गए। शोहरत और मुकाम के सच्चे हकदार इस फनकार को लोगों ने तो धोखा दिया ही साथ ही किस्मत ने भी इनके साथ खूब आंख-मिचौली खेली और वे गुमनामी के अंधेरों में खोते चले गए। बहरहाल एक बार फिर उन्हें सहारा मिला। और कवि के रूप में फिर से दिवाकर ने जादू बिखेरना शुरू कर दिया। इस तरह एक फनकार ने दुनिया से लड़कर खुद को जिंदा रखा।

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

खामोशी...



मेरी खामोशी को तुम, क्यों समझ नहीं पाती हो...
जर्रे-जर्रे में तेरी खुशबू है, फिर मुझकों क्यों नहीं महकाती हो...
दिन-रात तेरी इबादत करता हूं, पर न जाने क्यों डरता हूं...
एक दिन तू मेरा बन जाएगा, ये उम्मीद मैं तुझसे करता हूं...
पर न जाने क्यों मैं डरता हूं, पर न जाने क्यों मैं डरता हूं....

साथ मिले गर तेरा मुझको, तो मैं दुनिया से लड़ जांऊगा...
हर पथ पर चलके साथ तेरे, मैं कुछ ऐसा कर जाऊंगा...
क्यों समझ कर भी तू मुझसे, अनजान बनी रहती है...
खामोशी को पहचानेगी तू, ये उम्मीद में तुझसे करता हूं...
पर न जाने क्यों मैं डरता हूं, पर न जाने क्यों मैं डरता हूं...


क्या डर है तुझको दुनिया का, एक बार बता दे मुझको...
या फिर मैं समझू की, तू है बस एक सुंदर सपना...
जो हर रात मुझे महकाता है, सुबह होते उड़ जाता है...
फिर भी तुझमें कुछ बात है साकी, क्यों मैं तुझसे उम्मीद करता हूं...
पर न जाने क्यों मैं डरता हूं, पर न जाने क्यों मैं डरता हूं...

महेश मेवाड़ा, पत्रकार

अग्निपथ....


वृक्ष हों भले खड़े,

हों घने हों बड़े,

एक पत्र छांह भी,

मांग मत, मांग मत, मांग मत,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ


तू न थकेगा कभी,

तू न रुकेगा कभी,

तू न मुड़ेगा कभी,

कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ


यह महान दृश्य है,

चल रहा मनुष्य है,

अश्रु श्वेत रक्त से,

लथपथ लथपथ लथपथ,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ

हरिवंश राय बच्चन

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

कारवां गुजर गया...


स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क़ बन गए,
छंद हो दफ़न गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँ-धुआँ पहन गये,
और हम झुके-झुके,
मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना मचल उठा
इस तरफ जमीन और आसमां उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कली-कली कि घुट गयी गली-गली,
और हम लुटे-लुटे,
वक्त से पिटे-पिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

माँग भर चली कि एक, जब नई-नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरण-चरण,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी,
ग़ाज एक वह गिरी,
पुंछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी,
और हम अजान से,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

गोपालदास "नीरज"